रविवार, 8 सितंबर 2024

बरम बाबा / ब्रह्म बाबा






कुछ हार गया कुछ जीत गया।
कुछ चाहत अभी भी बाकी है।।
मन क्रम वचन से कहता हूं।।।
बरम बाबा की कहानी बहुत पुरानी है।V 




बाबा का स्थान लगभग हर एक गांव में पाया जाता है, बाबा गांव और आस पास के गांव को सद्बुद्धि का मार्ग दिखाते है, बाबा के अंदर कल छपट नही होता है, गांव के प्रत्येक नागरिक का ख्याल रखना अपना कर्तव्य समझते है, लेकिन गांव के लोग जिनकी तादात कम है बाबा को नहीं मानते होंगे, ऐसा मेरा समझना है, ऐसा भी हो की मेरी नजर बाबा जितनी तेज नही जो मैं कभी नही समझ सकता।

ब्रह्म बाबा के बारे में जानकारी का अभाव है, मन में आता है कि बाबा जब होंगे तो दिखते कैसे होंगे, रहते कैसे होंगे, खाते पहनते कैसे होंगे, फिर वही पापी मन में इस सवाल का जवाब भी आता है की सात्विक प्रवृत्ति के होंगे, भेद भाव नही करते होंगे, जाती पति के बंधन को नही मानते होंगे, अगर भेद भाव करते तो कैसे सभी समुदाय के लोग बाबा को मानते, मन्नत सबकी पूरा करते है चाहे दोस्त हो दुश्मन हो, ऊंच हो नीच हो, जातिगत भेदभाव बाबा के अंदर नही है,


ब्रह्म बाबा अपभ्रंश होकर बरहम बाबा हो गए है। भोजपुरी में हर शब्द की अपनी तरह से ओवरहाउलिंग की जाती है। ऐसा भी कहा जाय की बात का बतंगड़ भोजपुरी में बेहतरीन तरीके से बनाई जा सकती है, सोने पे सुहागा भी शब्दो द्वारा दिया जा सकता है,
ज्यों का त्यों वाला सिस्टम अब गांव में नहीं हैं। गांव में बरगद और पीपल के संगम से बने वृक्ष बरम बाबा की सेवा में लगे रहते है। विशाल और कई पीढ़ियों से विराजमान बाबा के बगल में पीपल का वृक्ष एक अपनी ही अंदाज में अठखेलियां करता रहता है। मेरे गांव में कोई बड़ा हो जाए और बरहम बाबा को दूध, जल, अक्षत न चढ़ाया मुमकिन नहीं। गंडक नदी और गांव  के बीच एक पड़ाव की तरह मौजूद बरहम बाबा किसी स्मृति चिन्ह की तरह विराजमान है। सदेव दुष्टात्मा से बचाए रखने की जिम्मेवारी हमारे बरम बाबा के ऊपर न जाने कितने पीढ़ियों से चली आ रही है।

बहुत पहले बरहम बाबा घास और मुज के बीचों बीच अकेले बैठे रहते थे, उनके बगल में छोटे छोटे बरम बाबा लोग आते गए, गांव के लोग जागरूक हुए धीरे धीरे बरम बाबा लोग बढ़ने लगे, साफ सफाई अभियान चालू हुआ, कहते है बरम बाबा किसी न किसी के ऊपर आ जाते है और अपना कार्य व्यक्ति और समाज से करवा देते है, 

सावन माह की हरियाली बरहम बाबा के चारो तरफ फैली रहती थी, जेठ की दुपहरी में कहीं छांव की गारंटी होती थी तो विशाल बरहम बाबा के आस पास लगे हुए पेड़ के नीचे। सुबह सुबह गांव के भक्तिमय लोग यहां जल चढ़ा देते है।
तपती धूप होने से पहले ही लोग अपने जानवरो को खोल के बरहम बाबा के पास आकर आराम फरमाते है, अपने में अठखेलियां करते हुए दो चार घर की पंचायत कर देते है,

तसल्ली के लिए पूर्ण याद ताजा हो जाय इसके लिए बरम बाबा को याद करना बहुत जरूरी है, क्या बदला है और क्या नहीं का मुआयना करने के लिए परदेश से लोग घर आते है, बरहम बाबा का आशीर्वाद लेने के बाद फिर ऐसी उम्मीद से जाते है की आते ही ब्रह्म बाबा को दूध, जल, अक्षत चढ़ाएंगे और अर्पित करेंगे,।

भागम भाग होती जिंदगी में एक जिम्मेवारी के साथ बरहम बाबा का नाम हमेशा आता है । काम की थकान और लगन से किया गया कार्य , ऑफिस का दौर या व्यापार की टेंशन, नौकरी का मिलना या नौकरी पाने की तमन्ना ब्रह्म बाबा की याद हमेशा दिलाती रहती है, स्वार्थ और निहस्वर्थ भाव ब्रह्म बाबा की पूजी है जो हम सभी के मन में भरी है, लेकिन किसी अफसोस के साथ नहीं। मैं यहां क्यों हूं और वहां क्यों नहीं। यह मेरा फैसला नहीं था। समाज और परिवार ने तय किया है कि बड़ा होकर कुछ करना है। कुछ करने के लिए कई प्रकार के खांचे बने हुए हैं। हम सब अपने आप को उन खांचों में फिट कर लेते हैं। एक खांचे से दूसरे खांचे में लौटकर मन बदल जाता होगा। हासिल वही होता है जो पहले खांचे में करने की कोशिश कर रहे होते हैं।
हर पल, है क्षण प्रत्येक व्यक्ति को बरहम बाबा की याद आती है। बरहम बाबा होते तब भी मुझे वापस आने के लिए नहीं कहते। न मैं वापस जाता। उन्होंने हमसे कभी कोई अपेक्षा की ही नहीं। अपने आप को सौंप दिया कि आओ और आकर मेरी छांव और डालों पर खेलो कूदो और चले जाओ। ये तो हम हैं कि उन्हें भूल नहीं पाते। आज सुबह बस एक पेड़ की याद आई है। बरहम बाबा की याद आई है। शायद इसलिए कि अब तक की जिंदगी में कोई दोस्त बना या न बना लेकिन ब्रह्म बाबा के पास हरियाली पेड़ से कोई रिश्ता कायम हो गया। ये शहर सिर्फ दफ्तर का पता भर है मेरे लिए। लेकिन परमानेंट अड्रेस आज भी ब्रह्म बाबा का स्थान ही है।