रविवार, 5 अप्रैल 2015

कविता दिल की

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लोग पूछते है आप ये कविताएँ कैसे बना लेते है, लिख लेते है?
मैं कहता हूँ :
कुछ आँसू कागज़ पर गिरे और छप गए कुछ बाते दिल में लगी और घाव बन के कलम पे आ गई।
लोग देखेंगे उनके साथ तो अफ़साना बना डालेंगे ।
हम अगर ये सोचते तो लोग हमें भी जमाना बना देते।।

ज़मीन के उपर मोहब्बत से रहना सीख लो
वर्ना ज़मीन के नीचे सुकून से ना रह पाओगे।।
इसीलिए कहता हूँ आजमाना दिल को ललचाना हमेसा कमजोरी की निसानी है। आप बदल जाओगे जमाना अपने आप बदल जायेगा।
हम क्यू सोचते है की वो क्या करता है।
हम अपने आप को क्यू नहीं देखते की हम क्या करते है।
बहूत भोली है जिन्दगी संभल के रखना।।

जाते जाते एक बात और-
आँखों को इंतज़ार का दे कर हुनर चला गया...
चाहा था इक शख़्स को जाने किधर चला गया...
लोगो ने मणि की आदत तो ऐसे ही ख़राब कर दिया है।।

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