फेसबुक पे हमारी मित्र ने एक पोस्ट किया, मन बहुत बिचलित हुआ, स्वास्थ्य भी ठीक नही है इस समय,
कल पोस्ट देखा लिख न पाया, बहुत सोचा फिर सोच जगाया, वापस लिखने बैठा तो उलझन सा मन मे आया,
स्त्री क्या है?
सबने अलग अलग बताया
परिभाषा को शब्दों में समझाया
हमें प्रेम का बोध कराने वाली
स्त्री रूप लेकर धरती पर आई है
शक्तिस्वरुपा जन्मदायनी
ममता का भण्डार है
ईश्वर द्वारा मिला हमें
वो अद्वितीय उपहार है
त्याग, दया, ममता, भाव, क्षमता
साहस का प्रेम दुलार है
परिवारों की सुखद अनुभूति
देने वाली वो बुनियाद है
पवित्र पावन रिश्तों का सार है उसके आँचल में
पृथ्वी जैसी विस्तृत है "गोलू" सी है उसकी बातो में,
निर्मल गंगा की धार है आँचल में समेटे परिवार को,
स्त्री ही जगत का मूल रूप है
स्त्री ही आधार है,
जग से मिली जगत बेदना
मन के अंदर सहेजा है
अपने स्त्रीत्व के बल पर
जिसने काल को वापस भेजा है,
उसकी ममतामयी छवि देखने को आतुर
प्रभु ने मानव रूप लिया
मीरा, राधा से रास रचाने गिरधर भी अभुभूत हुआ,
झेलना सहना पृथ्वी जैसा
अनुसुइया माता, सीता भी,
भक्ति भाव में राम प्रभु
जूठे बेर भी खाते हैं,
स्वाभिमान रूप है स्त्री का अमिट कथाएं है उसकी
जलती जौहर की ज्वाला है झांसी की वो रानी भी,
दिन प्रतिदिन पीड़ा भी सहती
मीरा के बिष की प्याला बन
परायो का दुख भी सहती है
दुर्गा, काली, की छाया बन,
स्त्री ही जगत का मूल रूप है
स्त्री ही आधार है,
फिर क्यों पग पग पे लोग स्त्री का करते अपमान है,
आओ "सुरसरि" मणि हम सब
इक नई चेतना का निर्माण करें
आँगन खुशियों से भरा रहे
स्त्री का सब सम्मान करें,
माँ का रूप
बहन का रूप
पत्नी का रूप
बेटी का रूप
स्त्री के रुप अनेक हैं
सकल धरातल सृष्टि पर
स्त्री की उपस्थिति विशेष है,
आदर की प्रतिमूर्ति रूप में
करुणा के अवतार में
सेवा में तत्पर रहती है
हे स्त्री नमन तुम्हे बारम्बार है
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बहुत बहुत धन्यबाद आपका
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