“लोग मुझ पर हंसते हैं क्योंकि में अलग हूँ
में लोगों पर हंसता हूँ
क्योंकि वो सब एक जैसे हैं।”
स्वामी विवेकानंद जयंती 2022
नाम – स्वामी विवेकानंद
गुरु/शिक्षक – रामकृष्ण
परमहंस
जन्म – 12 जनवरी 1863 अब कोलकाता
दर्शन – आधुनिक वेदांत, राज योग
धर्म – हिन्दू
मृत्यु – 4 जुलाई 1902
राष्ट्रीयता – भारतीय
साहित्यिक कार्य –
राज योग (पुस्तक)
स्वामी विवेकानंद का मूल मंत्र-
युवा शक्ति का आह्वान करते हुए
उन्होंने एक मंत्र दिया था, 'उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत' अर्थात् 'उठो,
जागो और तब तक मत रूको, जब तक कि मंज़िल प्राप्त न हो जाए।
युवाओं के प्रेणानाश्रोत के रूप में विख्यात स्वामी विवेकानंद का जन्म 1863 में हुआ था। उनका बचपन का नाम नरेंद्र दत्त था।
विवेकानंद एक महान हिन्दू संत और नेता थे, जिन्होंने रामकृष्ण मिशन और रामकृष्ण मठ की स्थापना की थी। इस महापुरुष का जन्मदिन प्रत्येक वर्ष 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाते हैं। उन्होंने विश्व के लोगों को भारत के अध्यात्म का दर्शन कराया।.
उनकी जयंती प्रत्येक वर्ष पूर्णिमा के बाद पौष कृष्ण पक्ष में सप्तमी को मनाई जाती है। इस दिन को मनाने का उद्देश्य युवा पीढ़ी को प्रेरित करने के साथ ही उनके पवित्र आदर्शों को आने वाली पीढ़ियों में जगाना था।
स्वामी विवेकानंद के प्रमुख सामाजिक विचार:-
1. दरिद्र नारायण (मानव सेवा)
2. शिक्षा को महत्व
3.ब्राह्मणवाद का विरोध
4. श्रमिक कल्याण
5.नारी सशक्तिकरण
6.राष्ट्रवाद का समर्थन
विवेकानंद का सामाजिक दर्शन अन्य दार्शनिकों की अपेक्षा बहुत अधिक व्यवहारिक था विवेकानंद के दर्शन पर वेदांत दर्शन का अधिक प्रभाव था। अतः व्यक्ति व्यक्ति के मध्य किसी भी आधार पर भेदभाव का विरोध करते थे विवेकानंद का मानना था कि पश्चिमी मानववाद जिसके अंतर्गत व्यक्तियों की स्वतंत्रता सामाजिक समानता तथा स्त्रियों के लिए न्याय व सम्मान के गुणों को भारत में अपनाया जाना चाहिए ताकि भारत भी आधुनिक हो सके।
विवेकानंद पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने ना केवल स्त्री स्वतंत्रता व समानता पर बल दिया अपितु उन्होंने स्त्री सशक्तिकरण को भी अधिक महत्व दिया ,उनका मानना था कि यदि स्त्री सशक्तिकरण होगा तो वे स्त्रियां समाज व परिवार के विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकेगी।
विवेकानंद जी प्रत्येक मानव को समान मानते थे और मानव में ईश्वर अर्थात नारायण का वास मानते थे ,वे मानते थे कि मानव की सेवा ही ईश्वर की सेवा है और ईश्वर की प्राप्ति हेतु उस ईश्वर की सेवा अधिक महत्वपूर्ण होती है जो ईश्वर गरीबों अर्थात दरिद्र में वास करता है अर्थात " दरिद्र ही नारायण " होता है।
विवेकानंद यह प्रमुखता से स्वीकार करते हैं कि मनुष्य ही ईश्वर हैं जो सभी मनुष्यों में समान रूप से व्याप्त हैं , विवेकानंद समाज कल्याण हेतु आधुनिक शिक्षा पद्धति को बहुत अधिक महत्व देते थे उनका मानना था कि शिक्षा का प्रचार प्रसार करने में समाज में सर्वश्रेष्ठ व उत्तम विचारों का समावेश होगा ,परिणाम स्वरुप समाज में नवीन तकनीकी और वैज्ञानिक दृष्टिकोण होने से समाज का कल्याण होगा।
विवेकानंद जी ने तात्कालिक समाज में प्रचलित ब्राह्मणवाद एवं विभिन्न कुरीतियों का खुलकर विरोध किया और उस समय हिंदू धर्म में जिन आडंबर ओ कर्मकांड ओं का प्रचलन था विवेकानंद उसे अस्वीकार करते थे वे धर्म को इन सभी आडंबरो से मुक्त करके धर्म को व्यक्ति की स्वतंत्रता और आनंद की प्राप्ति का प्रमुख माध्यम बनाना चाहते थे ,उनका मानना था कि धर्म भय की वस्तु ना होकर प्रेम और आनंद का सर्वोत्तम माध्यम है ,जो व्यक्ति के व्यक्तित्व विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
विवेकानंद श्रमिक कल्याण अर्थात उत्पादन करने वाले मजदूरों को अधिक महत्व देते थे ,उनका मानना था कि श्रमिकों के द्वारा जो उत्पादन किया जाता है उस उत्पादन में श्रमिकों का हिस्सा भी होना चाहिए क्योंकि वह इसके वास्तविक हकदार होते हैं।
विवेकानंद आध्यात्मिक गुरु होने के साथ राष्ट्रवादी विचारक थे ,उन्होंने देश के युवाओं को राष्ट्रवाद के लिए प्रेरित किया और कहा कि राष्ट्र का कल्याण तथा सेवा युवाओं का नैतिक धर्म है ,उन्होंने अपने राष्ट्रवाद को अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप में प्रस्तुत किया ,अर्थात प्रत्येक मनुष्य को अपने राष्ट्र के प्रति नैतिक रूप से उत्तरदाई होना चाहिए ,राष्ट्र के प्रति जो कर्त्तव्य होते हैं, उन्हें प्राथमिकता के साथ पूरा करना चाहिए।
स्वामी विवेकानंद के प्रमुख दार्शनिक विचार
1. वेदांत व हिंदू धर्म की व्यवहारिक व्याख्या
2.गीता के निष्काम कर्म का समर्थन
3. आध्यात्मिक मानववाद
पूरब और पश्चिम के मिलन के समर्थक
विवेकानंद जी ने " अध्यात्मिक मानववाद " को अपने दर्शन में अधिक महत्व दिया ,आध्यात्मिक मानववाद से तात्पर्य अध्यात्म का उपयोग मानव कल्याण के लिए करना और आध्यात्मिक चिंतन में केवल उन्हीं पक्षों को सम्मिलित करना जो मानव के लिए उपयोगी व कल्याणकारी हो।,
धर्म के बारे में स्वामी
जी की सोच
स्वामी
विवेकानंद धर्म के बारे में अग्रसर सोच रखते थे. उन्होंने पूरे विश्व को बताया कि
हिंदू धर्म हमेशा सामान व्यवहार करने और व्यक्ति के व्यक्तितव को निखारने के लिए
पूरे विश्व को तैयार करता है.
मुझे गर्व है कि
मैं उस धर्म से हूं जिसने
दुनिया को सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है. हम सिर्फ़ सार्वभौमिक सहिष्णुता पर ही विश्वास
नहीं करते बल्कि, हम सभी धर्मों को सच के रूप में स्वीकार करते हैं. मुझे गर्व है कि मैं उस देश से हूं जिसने
सभी धर्मों और सभी देशों के सताए
गए लोगों को अपने यहां शरण
दी.
स्वामी जी के अनुसार योग क्या है
स्वामी विवेकानंद के अनुसार; जो व्यक्ति मन को संयमित करने का रहस्य जान
जाए वही योग है।
Enrolment Number- 2105013625
RC CODE- COE: Centre for online education
Name- Ganga Mani Dixit
Corse Name- PGCGPS: PG: Certificate in Gandhi and Peeace Studies
EMAIL-ID- gangamanidixit@gmail.com
Contact Number- +91-8788439261
Address- Village Mishrouli Dixit, Post Bhatni- District- Deoria-
274701
Date – 29/12/2021
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