❤️❤️ कल यानी की 20 जून को बाबूजी दिवस एक लेख लिखा शायद बाबूजी को पसंद आये ❤️❤️
अगर पिताजी हैं, समय दीजिए उनको ...
कल रात पिताजी मेरे सपने में आये थे। किसी बात पर मुझे कुछ समझाने की कोशिश कर रहे थे पर हमेशा की तरह मैं उनकी बात मानने को तैयार नहीं था। ठीक से कुछ याद नहीं लेकिन मैं नाराज़ होकर दूसरे कमरे में चला गया और फिर सपना टूट गया। नींद खुली और फिर यह अहसास हुआ कि वह एक सपना था। ऐसे सपने मुझे रोज आते हैं। पिताजी को गये 55 दिन बीत चुके हैं।
पिताजी के जाने का अभी तक मुझे विश्वास नहीं हुआ है , क्योंकि मैंने कभी भी इस जीवन में यह कल्पना नहीं की थी कि मुझे उनके बिना भी इस दुनिया में रहना पड़ेगा।
मुझे लगता था कि मेरे पिताजी कभी नहीं मरेंगे। अभी भी हमेशा यही लगता है कि जब भी घर जांऊंगा, पिताजी अपने रूम से निकल कर मेरी राह देखते होंगे, जब पैर छूकर आशीर्वाद लेता रहूंगा तो मेरे सर के ऊपर अपने दोनों हाथ फैलाकर अशोरवाद देते होंगे, अयोध्या से मिश्रौली जाने में 5 घंटे लगते है लेकिन बाबूजी बार बार अम्मा से कहते थे शाम को आएंगे, रास्ते भर काम करते आते होंगे
बाबूजी को अगर कोई बीमारी हो जाये तो सबसे पहले अम्मा से कहते थे "धन्नाजी" को न बताना, लड़का परेसान हो जाएगा, लेकिन पिछले दो बार से बाबूजी आशीर्वाद देने नही आये, और शायद अब कभी आएंगे भी नही,।
अब मुझे उनके बिना आशीर्वाद के ही घर मे जाना होता है, आदत डालनी की कोसिस में लगा हूँ, की बाबूजी को भूल जाऊ.... अब तो अपने और अपने छोटे भाई के जीवन के सारे काम उनके बिना ही करने पड़ेंगे जो उनके रहने पर उन्होने मुझे कभी नहीं करने दिया .... हक़ीक़त में मुझे अब मुझे सारा जीवन ही उनके बिना जीना है ...। कभी सोचा नहीं था कि एक ऐसा समय भी आयेगा जब बाबूजी नहीं रहेंगे और घर के सभी चीज़ों को संभालने के लिये ख़ुद को ही आगे बढ़ना पड़ेगा । मगर आज उनके बग़ैर ही जीना पड़ रहा है ...।
मानो कल की ही बात हो.. एक अच्छे भविष्य की आस में जब मैंने घर छोड़ा था ..उस वक़्त पिताजी पचास साल के थे। उसके बाद बस मेंहमान की तरह ही मेरा घर आना जाना हो पाता था , कभी दो दिन के लिये तो कभी चार दिन के लिये।
जब सूरत, पुणे, मुम्बई में नौकरी करता था तो ज़्यादा दिन नहीं रूक पाता था क्योंकि एक तो प्राइवेट नौकरी और ऊपर से सेलरी कटने का नुक़सान होगा और जब अपना खुद का बिज़नेस करने लग गया तब छुट्टी नहीं मिलती थी। ऐसे ही समय बीतता गया और हर साल बाबूजी से केवल 4-5 बार ही मिल पाता था । फ़ोन हर हफ्ते करते थे और एक ही बात रोज बोलते थे कि हां बाबू यहाँ सब ठीक है।
हमें पढ़ाने के लिये एक स्ट्रिक्ट फ़ादर होने का जो दिखावा उन्होने हमारे बचपन में शुरु किया था, उसी को जीते रहे। वह मुझे बहुत प्यार करते थे लेकिन कभी बोलते नहीं थे । मैं भी उन्हे बहुत प्यार करता हूँ लेकिन कभी खुलकर गले नहीं लग पाया उनसे। मैं कहीं भी होता था , उनका फ़ोन नियम से हफ्ते में एक बार जरूर आता था । फ़ोन पर यह कभी नहीं बोला कि आज तबियत ठीक नहीं है । हमेशा यही बोलते थे कि सब ठीक है ।
मुझे याद है वह दिन जब मैंने पीसीएस का प्री एग्जाम दिया था और फेल हो गया था, तब वह बहुत खुश थे, कहते थे जीवन मे कभी निराश न होना, पानी की तरह आगे बढ़ते जाओगे, और आज उनका कहा हर बात सत्य साबित हुआ, लेकिन बाबूजी मेरे खुसी में शामिल होने के लिए न रहे, बिज़नेस मैन इब बन गया तो अपने पुराने मित्र डॉक्टर राजेन्द्र सिंह से कहते मेरा बेटा एक अच्छे लेबल का व्यवसायी बन गया, जब कन्हाजी ने बिज़नेस स्टार्ट किया तो मुझसे बोले मेरे मन का भार अब हल्का हो गया..........वह ख़ुशी उनके चेहरे की चमक में दिख रही थी उसके बाद मानो जीवन में कुछ पाने को बचा ही नहीं था । भगवान ने उन्हें सब कुछ दे दिया था। एक छोटी सी डॉक्टरी पेसे से 4 बहन 2 भाइयो को उन्होंने पढ़ाया और जब दोनों बेटे अचछी जगह पर पहुँच गये तो वह संतुष्ट हो गये थे।
जिस सपने को टीटी बाबा ने देखा (मेरे बाबा को लोग टीटी बाबा) के नाम से जानते है, उस सपने को बाबूजी ने देखा और मुझसे कहा कि एक लड़का वकील बनना चाहिए, आज वही एक कसक मेरे मन मे रह गया.........पूरा करूंगा आपका सपना बाबूजी।
एक ओर हम भाइयों की उपलब्धियों से जहाँ वह बहुत ख़ुश रहते थे वहीं हम लोग से दूर रहने पर वह भीतर ही भीतर दुखी भी रहते थे । साथ ही साथ इन बीते सालों में पिताजी का स्वास्थ्य तेज़ी से निखर रहा था। वैसे हर साल हम उनका मेंडिकल चेकअप कराते रहते थे । लेकिन सबका समय भगवान लिखकर भेजता है । ऐसे ही दूर दूर जीते हुये सत्रह साल बीत गये और अचानक 55 दिन पहले पिताजी चले गये । मिडिल क्लास के लड़के संघर्ष ही करते रह जाते हैं , और वक़्त हाथ से निकल जाता है । हम लोग माँ बाप के संघर्ष से अमूमन अंजान ही रहते हैं ..... क्योंकि जब माँ बाप संघर्ष करते रहते हैं तब हम खुद ही अबोध होते हैं .... जब जानने की उम्र आती है तब हमारे अपने संघर्ष शुरू हो जाते हैं ....ऐसे ही चलता है जीवन ... ।
अंग्रेज़ी नॉवेलिस्ट थॉमस हार्डी ने कहीं लिखा था कि "हैप्पीनेस इज बट एन ऑकेज़नल एपिसोड इन जनरल ड्रामा ऑफ़ पेनफुल लाइफ़" ( ख़ुशियाँ दुख भरे जीवन में कभी कभी ही आतीं हैं ) । मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ । पिताजी ने हमारे जीवन के लिये अपना सबकुछ त्याग दिया और जब हम शायद उनके लिये कुछ भी नहीं कर पाये । जब उनका सही में जीवन जीने के समय आया , तब भगवान ने उन्हें हमसे छीन लिया । बहुत कुछ करना था उनके लिये , बहुत कुछ बताना था उनको , कुछ माफ़ी भी माँगनी थी उनसे ... लेकिन वह सब उनके जाने के साथ ही मेरे भीतर ही है अब ....।
जीवन की आपाधापी मे मिडिल क्लास के बच्चे मेरी तरह ही अपनों को खो देते हैं । बाद मे केवल अफ़सोस रह जाता है । कनाडा और अमरीका जाने वाले लोग तो अपनों को आख़िरी बार देख भी नही पाते हैं । जीवन मे हासिल की गईं तमाम ऊँचाइयाँ इन मौक़ों पर खोखली सी नज़र आतीं हैं । जाने वाले कभी लौट कर नही आते और अमूमन सभी लोग अपनों के जाने के बाद ही इस बात को महसूस कर पाते हैं । जीवन अपनों से हैं , अपनी उपलब्धियों से नही ...।
बाबूजी को भगवान ने एक बड़ा जीवन दिया , लेकिन उसकी उम्र कम थी । उनका जाना पूरे परिवार को हिला गया । मानो किसी ने अंदर तक काट दिया है परिवार की आत्मा को । शरीर से जैसे जान अलग हो गयी हो । पिताजी का जाना मैं आज तक स्वीकार नहीं पाया हूँ । पिताजी अकेले नहीं गये , वह अपने साथ मेरा पूरा घर लेकर चले गये। उनकी याद मेरे घर के जर्रे ज़र्रे में , घर के हर कोने में है । घर की हर एक चीज़ उनकी यादों से भरी हुई है । उनकी डायरी में उनकी लिखावट आज भी ज़िंदा है । उनकी अटैची में रखे हुये उनके पुराने कपड़ों में उनकी ख़ुशबू मैं आज भी महसूस कर सकता हूँ । उन्हें पैंट शर्ट पहनने का बहुत शौक़ था , आलमारी में टंगे वह सारे पैंट शर्ट आज भी शायद उनके आने का इंतज़ार कर रहे हों । उनकी किसी भी चीज़ को अपने से दूर करना असंभव है । उनकी हर एक चीज़ में मेरी यादें जुड़ी हुईं है और मैं अपनी यादों को अपने से कभी अलग नहीं कर सकता । आज मेरा दिल उनके जीवन की याद के साथ धड़क रहा है, आंखों में आशू लिए कलम मानो ठहर सी जा रही है, लेकिन क्या करूँ ,खुद से सवाल और खुद का जवाब कोई न है मेरे आस पास,
बाबूजी कभी नहीं मर सकते । मैंने उनको और उनकी यादों को अपने भीतर ही ज़िंदा कर लिया है ...बाबूजी अब उसी दिन मरेंगे , जिस दिन मैं मरूँगा ...।
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Source : "ttbabasamachar"
लेखक
गंगा मणि दीक्षित
सदस्य- आल इंडिया मीडिया एसोसिएशन
जिला ब्योरो चीफ- गौवाड़ी समाचार
प्रदेश प्रभारी - V9 समाचार
संस्थापक- टीटी बाबा समाचार
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